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Sunday, May 24, 2020

प्रतीति महत्व - दिनचर्या, योग , आहार का / Glimpse- Importance of - Routine , Yoga , Food : For Physical and Mental Status

 महत्व - नियमित दिनचर्या, योग , आहार का ...

( स्मरण शक्ति, रोगप्रतिकारक शक्ति , मानसिक एवं शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लियें )

 

Importance of Routine , Yoga and Food ...

( To Improve Physical & Mental Capacity as well as to Improve Immunity )

प्रकृति निर्मित सर्व श्रेष्ठ कृति है - मानव शरीर। जिसका सर्वांगी  - मानसिक व शारीरिक - विकास जीवन यापन के लिए आवश्यक है। क्योंकि इसमें परमात्मा की तेजोमय शक्तियां बीज रूपों में निहित है।  कहा गया है की ,

"शरीर धर्मस्य साधनं | "

आम तौर पर दैनिक जीवन में , वहीं शक्तियाँ काम आती हैं , जिन्हें हम प्रायः प्रयोग में लाते  हैं।  उपलब्ध शक्तियों को योग , नित्य दिनचर्या , श्रम , सात्विक आहार  इत्यादि द्वारा कार्यान्वित / जगाकर  वर्तमान समय को आनंददायक , स्वस्थ एवं नीरोगी बना सकते हैं। विद्वानों ने भी कहा है की " स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। " वास्तव में शक्तियाँ नैसर्गिक होती हैं। मस्तिष्क व शरीर के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। मानसिक व शारीरिक स्वस्थता से मानव शरीर , हर समस्याओ का समाधान कर प्रगति पथ पर सुगमन कर सकता है।  Truly said " He who has health , has Hope & he who has hope , has Everything. " 

शरीर को प्रभावहीन करने वालें कारक -

मानसिक तनाव , चिन्ताएँ ,  आहार विकार , नियमित दिनचर्या  में सतत फेरबदल आदि मूलतः मानवशरीर को हर तरह से प्रभावहीन बना देती हैं - चाहे वह व्यवहार हो, स्वभाव हो, रोग प्रतिरोधी क्षमता हो इत्यादि। अतः नियमित दिनचर्या , सात्विक आहार, योग , सामाजिक व आध्यात्मिक प्रवृति आदि के आचरण करने से मानव शरीर की क्षमता बनी रहती है व समयानुसार इनके प्रभाव से मानव समाजोपयोगी कार्य में अपना योगदान पूर्ण रूप से दे सकता है। 

क्षमता ( जैसे की - आध्यात्मिक , रोगप्रतिकारक , स्मरण आदि )  बढ़ाने के हेतु - 

 

संस्कृत में कहा गया है की , 

"दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् | 
सत्यपूतं वदेत् वाचं  मनः पूतं समाचरेत् || "

जिसका सामान्य अर्थ  विस्तार है की - सामान्य व्यक्ति को हमेंशा जीवन में शुद्धता व  पवित्रता के बारे में सावधान रहना चाहिए। ( मानव ) आँखों से शुद्ध लगे स्थान पर पांव रखें ,  वस्त्र से शुद्ध कर (छान कर ) पानी पीये , सत्य व  मृदु भाषित शब्दों का उच्चारण करें , मन से विचारित ( शास्त्रों के अनुसार ) जो पवित्र लगें उसका आचरण करें। 

सामान्यतः नित्यचर्या ( -रूटीन ) , योग-व्यायाम , सात्विक आहार, मृदुवचनों - आवयश्क है शरीर की क्षमता बढ़ाने के लिए , कंटिन्यू इम्प्रूव करने के लियें। 

प्रातः जल्दी उठे , देवस्मरण करें , नित्यक्रम से निश्चिंत हो योग-व्यायाम करें। सुबह एक-दो ग्लास गुनगुना पानी पियें।  सुबह के नास्ते में ऋतानुसार फलफलादि , दूध ,दही का सेवन करें।  गर्मी एवं ऋतुसंक्रांति काल में विटामिन्स ,मिनरल्स  भरपूर आहार पदार्थों का प्रयोग करें। कम नमकीन , कम तैलीय व प्रकृर्ति ( पित्त ,वायु,कफ ) अनुसार अनाज का  सेवन करें। शास्त्रों , आर्युवेद  अनुसार एवं घर के बड़े-बुजुर्ग द्वारा बतायें  नुसखों , मार्ग दर्शन के अनुसार , सुबह के समय काढ़ा बना के ऋतुअनुसार एवं प्रकृर्ति ( पित्त ,वायु,कफ ) अनुसार योग्य  मात्रा में पिने से शरीर की क्षमता व रोगप्रतिकारक क्षमता भी बढ़ती है एवम शरीर हर तरह से स्वस्थ रहता है। 

गुजराती में कहा गया है ,

 " ઋણ , અગ્નિ તથા વ્યાધિ લેશમાત્ર રહી જતાં ,
વધે ફરી ફરી , તેથી કદી ન બાકી રાખવા  ."
 
सामान्य अर्थविस्तार है - यह व्यावहारिक सत्य है कि जीवन में कुछ चीजों का जड़मूल से नाश करना / होना ही उचित व आवश्यक है , नहीं तो  चीजें क्रमशः बढ़ती जाती है , जैसे - ऋण , अग्नि और व्याधि। 

तो मित्रो हमारे आसपास ही ऐसी बहुत सी चीजें  हैं , जो हमारे सर्वांगी  विकास में मदद रूप  बनती है।  बस हमें सोच समझकर , "सस्टेनेबल डेवलपमेंट" को यथार्थ करते  हुए , समाज कल्याण में योगदान दें कर, जीवन लक्ष्य को प्राप्त करना है।  

🙏🙏🙏प्रणाम 🙏🙏🙏

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