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Sunday, May 31, 2020

Time is the Infinite, to keep continue progress of existence and also progressive events... / समय अनंत है, अस्तित्व की प्रगति ,साथ ही सतकर्म के माध्यम से ...

एक क्षण समय का _ Just a moment of The Time


 एक प्रचलित कथन है - " मैं समय हूँ। "

And also truly said that,

" The great end of Life is not knowledge but action - at appropriate time."



समय -  एक नियत गति से हंमेशा आगे बढ़ता रहता है , चलता रहता है। यह एक निर्विरोध , निरंतर , निर्बाध है , न किसीकी प्रतीक्षा करता है न ही आराम करता है। समय के प्रत्येक पल के सदुपयोग द्वारा ही हम जीवन के हरक्षण को अविस्मरणीय , आनंददायक बना सकते है। इसलिए कहा गया है की ,
  
" कल करें सो आज कर , आज करें सो अब ,
 पल में परिलय होएगी , बहुरि करेगो कब।  "

प्रत्येक क्षण का यथोचित सम्मान कर , निहित कर्म द्वारा ही मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकते है।  जैसे की , शिक्षा प्राप्ति समय योग्य शिक्षा प्राप्त करना, गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों का निर्वहन , बालक से बड़े हो जाने पर हमें हमारा बचपन याद आना,  नौकरी करते हुये कॉलेज के दिन याद आना,  छोटे हमारे बच्चो को डांटते समय पेरेंटस की डांट याद आ कर मुस्कुराना, हरकुछ दिन पे हमारे पेरेंटस का हमारे लिए सरप्राइस लाते हुए का याद आना , स्कूल में उच्च अंक पाना , नौकरी मिलने का वह दिन , जरुरत मंदो की मदद कर उनकी  आँखों में दिखता प्यार आदि  ....... 
सदगुणी , कर्मठ व्यक्ति अपनें प्रत्येक पल के महत्व को समज , उन क्षणों का यथोचित सन्मान कर , अपनें व स्वजनों के जीवन समय को अमृततुल्य बना देता है। अतः संस्कृत में योग्य कहा है की ,

 "काव्यशास्त्र विनोदेन , कालो गच्छति धीमतां |
 व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा || "

(सामान्य अर्थविस्तार है की " बुद्धिशाली लोको का समय काव्य ,शास्त्र ,  विनोद में, सत्कर्मो में, है।  मूर्खो का समय व्यसन ,निंद्रा व कलह में बीतता है। )

मनुष्य जीवन में सुब कुछ प्राप्त कर सकता है - उचित समय पर यथा शक्ति कर्म के माध्यम से। क्यों की जीवन में एकबार समय व प्राण चले जाते है तो वापस कभी नहीं आतें। 



 गुजराती में कहा गया है - 

"સંપત ગઈ તે સાંપડે , ગયાં વળે છે વહાણ ;
ગત અવસર આવેં નહિ , ગયા ન આવે પ્રાણ  ."

(सामान्य अर्थविस्तार है की - जो संपत्ति चली गई है वह भी वापस पाई  है , जो नौकाए व्यापर के लिए गए है  वापस आ सकते है , परन्तु  बीत गया अवसर व शरीर  निकले प्राण कभी वापस नहीं आतें। )

अतः समय के सदुपयोग के लिए अपने दैनिक क्रम को सुनिश्चित कर, एकाग्र चित्त हो कर कार्य करने से अवश्य ही उस समय - क्षण की अनुभूतिमें  अलौकिकता का एहसास होने के साथ सफलता भी जरूर प्राप्त होगी।  श्री तुलसीदासजी ने यथार्थ कहा है की ,

"समय जात  नहीं लागहि बारा। "

अतः शारीरिक ,मानसिक ,आध्यात्मिक व सर्वांगी विकास एवं देश -समाज कल्याण हेतु , प्रत्येक क्षण की अनुभूति कर , समय का सन्मान करें। 

भवदीय 

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1 comment:

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