एक क्षण समय का _ Just a moment of The Time
एक प्रचलित कथन है - " मैं समय हूँ। "
And also truly said that,
समय - एक नियत गति से हंमेशा आगे बढ़ता रहता है , चलता रहता है। यह एक निर्विरोध , निरंतर , निर्बाध है , न किसीकी प्रतीक्षा करता है न ही आराम करता है। समय के प्रत्येक पल के सदुपयोग द्वारा ही हम जीवन के हरक्षण को अविस्मरणीय , आनंददायक बना सकते है। इसलिए कहा गया है की ,
" कल करें सो आज कर , आज करें सो अब ,
पल में परिलय होएगी , बहुरि करेगो कब। "
प्रत्येक क्षण का यथोचित सम्मान कर , निहित कर्म द्वारा ही मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकते है। जैसे की , शिक्षा प्राप्ति समय योग्य शिक्षा प्राप्त करना, गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों का निर्वहन , बालक से बड़े हो जाने पर हमें हमारा बचपन याद आना, नौकरी करते हुये कॉलेज के दिन याद आना, छोटे हमारे बच्चो को डांटते समय पेरेंटस की डांट याद आ कर मुस्कुराना, हरकुछ दिन पे हमारे पेरेंटस का हमारे लिए सरप्राइस लाते हुए का याद आना , स्कूल में उच्च अंक पाना , नौकरी मिलने का वह दिन , जरुरत मंदो की मदद कर उनकी आँखों में दिखता प्यार आदि .......
सदगुणी , कर्मठ व्यक्ति अपनें प्रत्येक पल के महत्व को समज , उन क्षणों का यथोचित सन्मान कर , अपनें व स्वजनों के जीवन समय को अमृततुल्य बना देता है। अतः संस्कृत में योग्य कहा है की ,
"काव्यशास्त्र विनोदेन , कालो गच्छति धीमतां |
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा || "
(सामान्य अर्थविस्तार है की " बुद्धिशाली लोको का समय काव्य ,शास्त्र , विनोद में, सत्कर्मो में, है। मूर्खो का समय व्यसन ,निंद्रा व कलह में बीतता है। )
मनुष्य जीवन में सुब कुछ प्राप्त कर सकता है - उचित समय पर यथा शक्ति कर्म के माध्यम से। क्यों की जीवन में एकबार समय व प्राण चले जाते है तो वापस कभी नहीं आतें।
गुजराती में कहा गया है -
गुजराती में कहा गया है -
"સંપત ગઈ તે સાંપડે , ગયાં વળે છે વહાણ ;
ગત અવસર આવેં નહિ , ગયા ન આવે પ્રાણ ."
(सामान्य अर्थविस्तार है की - जो संपत्ति चली गई है वह भी वापस पाई है , जो नौकाए व्यापर के लिए गए है वापस आ सकते है , परन्तु बीत गया अवसर व शरीर निकले प्राण कभी वापस नहीं आतें। )
अतः समय के सदुपयोग के लिए अपने दैनिक क्रम को सुनिश्चित कर, एकाग्र चित्त हो कर कार्य करने से अवश्य ही उस समय - क्षण की अनुभूतिमें अलौकिकता का एहसास होने के साथ सफलता भी जरूर प्राप्त होगी। श्री तुलसीदासजी ने यथार्थ कहा है की ,
"समय जात नहीं लागहि बारा। "
अतः शारीरिक ,मानसिक ,आध्यात्मिक व सर्वांगी विकास एवं देश -समाज कल्याण हेतु , प्रत्येक क्षण की अनुभूति कर , समय का सन्मान करें।
भवदीय
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