जीवन उदभव ,अस्तित्व व विकास का एक सुरक्षित आवरण - पर्यावरण :: संरक्षण की आवश्यकता है जिसकी (!!!)
5th June- World Environment Day -is celebrated to encourage awareness and action for the protection of the Environment as well as Earth.
" भर गया है जहर से, संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों का, सही परिचय न पाकर ,
बुझ गई है लौ "पृथा " की , जल उठो फिर सींचने को। "
श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी " निराला" द्वारा रचित पंक्तियाँ उचित है। सामान्य भावार्थ है - "निराशा में आशा का संचार करना " . . .
पर्यावरण = Environment= शब्द फ्रेंच शब्द " environner" से लिया गया है। जिसका अर्थ होता है "घिरा हुआ (to surround)". सामान्यतः पर्यावरण की "प्रकृति ( nature)" से समता की जाती है,जिसके अंतर्गत पृथ्वी के भौतिक घटकों को सम्मिलित किया जाता है की जो जीवों के उत्पन्न , विकास व संवर्द्धन हेतु आवश्यक परिस्थितियाँ प्रदान / प्रस्तुत करते हैं।
पर्यावरण एक जैविक व भौतिक संकल्पना है। अतः इसमें पर्यावरण को जैविक व अजैविक संघटकों के आधार पर वर्गीकरण किया गया है - १) अजैविक पर्यावरण - भूमण्डलीय , जलीय ,वायुमण्डलीय , तथा - २ ) जैविक पर्यावरण - वानस्पतिक पर्यावरण , जंतु पर्यावरण। मनुष्य ने जैविक संघटक में -सामाजिक, आर्थिक,धार्मिक आदि,घटकों को जोड़कर नया मानवनिर्मित पर्यावरण - " सांस्कृतिक पर्यावरण " की रचना की है। सभी जीवधारियों का जीवन अस्तित्व पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर ही आधारित है। संसाधनों का आधारभूत नियम है-"समस्त संसाधन निश्चित व सिमित होते है। "प्राकृतिक संसाधनों हैं- भूमि , मृदा ,जल ,खनिज , पौधें ,जीव -जंतु आदि। मनावसमाज के उद्धभव ,अस्तित्व एवं विकास के मूलाधार है ये- पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधन।
प्राचीन काल से ही मानव पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहा है ,प्रकृति जागरूक रहा है। प्राचीन ग्रंथो में , श्री वाल्मीकि रचित 'रामायण' में , महाकवि कालिदास की रचनाओं में, आदि में प्रकृति सौंदर्य का वर्णन अदभुत , अनन्य है। पुरे ब्रह्माण्ड में विकसित - पृथ्वी पर जीवन है ,पर यह हरा-भरा ग्रह क्रमशः प्रदूषित हो रहा है। मशीनीकरण व मानवीय कार्यकलाप से पर्यावरण संबंधी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती है / हुई हैं। ,जैसे की - मृदा का ह्रास , वायु की गुणवत्ता में कमी आना , जल प्रदूषण , जैव विविधता संकट आदि। पुराण में कहा गया है की ,
" पारुष्यं सर्वभूतानां प्रथमं नरकं स्मृतं।
छेदनं वृक्षं जातिनाम द्वितीयं नरकं स्मृतं।। "
सामान्य अर्थविस्तार है - जीवमात्र की हिंसा को पहले नरक का नाम दिया और वनस्पतियों के छेदन को दूसरे। "
अतः वर्तमान व भावी पीढ़ियों के अस्तित्व को बनायें रखने के लिए पर्यावरणीय संतुलन आवश्यक है। पर्यावरण प्रबंधन व प्रकृति संरक्षण प्रवृति से ही मानव समाज का अस्तित्व व विकास दीर्घावधि तक बना रह सकता है।
विश्व पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत १९४८ में " द इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज " की स्थापना द्वारा की गई थी। दुनिया के कई देश अपने प्रयासों द्वारा पर्यावरण संरक्षण के प्रयास कर रहे हैं । १९७२ में हुए स्टॉकहोम पर्यावरण संमेलन में ५ जून ( 5th June) को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित किया गया और सभी सम्मिलित देशों ने पर्यावरण व पर्यावरण संरक्षण के प्रति सक्रीय एवं संकलती प्रयास को महत्त्व दिया। इसकेबाद रियो-डी संमेलन , वियेना कन्वेंशन ,कोपेनहेगन संमेलन आदि संमेलनो द्वारा विश्व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सराहनीय आमूल कदम व वैज्ञानिक प्रयास किये गए हैं ,जैसे की - सतत विकास की संकल्पना,ग्रीनहाउस गैसेस के उत्सर्जन पर नियंत्रण , वृक्षारोपण के व्यापक प्रयास ,संसाधनों का अनुकूलतम उपभोग, रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेज -सोलर एनर्जी , विंड एनर्जी का सहज उपयोग ,... आदि।
श्री मन्नारायण जी ने यथार्थ अंकित किया है ,
"फूल न तोड़ो , ए माली तुम ,
भले ,डाल पर मुरझाएँ ;
बना नहीं सकते जिनको हम ,
तोड़ उन्हें क्यों मुस्काएँ। । "
आधुनिक प्रौद्योगिकी के इस दौर में , गलाकाट प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में पर्यावरण में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है , प्रकृति में काफी क्षति हुई है। अतः आधुनिक तकनिकी के समन्वय व योग्य प्रयोग के माध्यम से , पर्यावरण से घनिष्ठता स्थापित करना हमारा परम कर्तव्य बन गया है।
So,truly said that,
"To see a World in a Grain of Sand, & a Heaven in a Wild Flower,
Hold Infinity in the palm of your hand , & Eternity in a Hour."
तभी धरती " शस्य श्यामला " बनी रहेगी व वसुंधरा की हरितिमा पुनः लौटेगी। विश्वबंधुत्व भावना एवं सकल प्रयासों मात्र से ही हमारी पृथ्वी दीर्घकाल तक जीवों के रहने योग्य बनी रहेगी। अतः यथाचित कहा गया है की ,
" रक्षये प्रकृति पान्तुलोका। "
(सामान्यार्थ है -ओ विश्व के लोगों ! प्रकृति का संरक्षण करते हुए इसका उपयोग करो। )
भवदीय
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